“Stay Connected and Informed: Empowering Lives, Transforming Communities!”
“Stay Connected and Informed: Empowering Lives, Transforming Communities!”
जिससे प्रत्येक नगर और ग्राम पंचायतों की ऊर्जा सूक्ष्म ऊर्जा पवित्र होकर सभी में प्रेम सौहार्द का वातावरण निर्माण करने में सहयोग करें। एक ऐसा ऊर्जा स्तंभ जो मानव के शरीर के सूक्ष्म कारण शरीर को रोग मुक्त कर सके। नाम की महिमा तो सभी जानते हैं: इस कमलकाल में नाम से ही हम अपने पाप पुण्य के फल से न्यून हो सकते हैं। नाम के गुण से इस सृष्टि में जीवन के संबंधों को निभाने का आजतिक बल चाहिए – आज के इस युग में प्रेम की मिसाल बनकर रह गया है तो उसका मूल कारण अप्राकृतिक स्त्रॉं जो हमारे मानसिक कोमलताओं को नष्ट कर रहा है, डिप्रेशन, मानसिक असार, काकुता, भोग विलासी होना हम न चाह कर भी इस जाल में फंसते जा रहे हैं। इसका विकल्प ढूंढने के लिए हमें तात्पर्य प्रयास करने पड़ रहे हैं, पर यह साधन ठीक वैसे ही हैं जैसे बीमारी होने पर एंटीबायोटिक रासायनिक दवाइयाँ लेना जो एक सिस्या को तो ठीक करती है पर शरीर में शारीरिक कष्ट बढ़ाती जाती है। जो कुछ भी सही है उसका साइड इफेक्ट काफी समय बाद प्रकट होता है – इसलिये श्री बालाजी पराशक्ती विज्ञान शोध एवं अनुसंधान केंद्र की लगातार खोज से यह सिद्ध हुआ कि हमें ऐसे साइलेंट जोन बनाने पड़ेंगे जो नकारात्मक विचारों, नकारात्मक स्त्रॉं, अप्राकृतिक स्त्रॉं से पीड़ित हमारे मानसिक – आत्मा – इन सबको सकारात्मक अदृश्य तरंगों से पुष्ट करें, जिससे हमें मालूम है कि हमारे शरीर की कोमलताओं को ठीक करने का कार्य केवल और केवल श्री बालाजी नाम जितना अच्छा कर सकता है उतना कोई नहीं। चाहे हम चिकित्सा के किसी स्रोत का प्रयोग करें, अगर हमारी मानसिक स्थिति नष्ट हो गई तो कोई भी विकल्प कार्य नहीं कर सकता। इसलिये हमें ऐसे प्राकृतिक स्त्रॉं (ई-शरीर) को महसूस कर अपने ब्रह्माण्डीय शरीर में पुन: स्थापित करने के लिए ऐसे हर् व्य ऊर्जा स्तंभों की आवश्यकता पड़ेगी जो भविष्य में और समय समय पर हमें अपने आध्यात्मिक बल को जागृत करने की विद्या सरलता से उपलब्ध बनाये रखे। आज इसी आध्यात्मिक बाल शरीरिक मानसिक स्वास्थ्य को पाने के लिए यह एक वास्तविक प्रयास किया जा रहा है, ताकि सही तरीके से उन्हें स्थापित किया जा सके।
उत्तर प्रदेश के प्रत्येक नगर में सीताराम नाम लेखन बैंक एवं श्री बालाजी महाराज का धाम जहां केल “नाम महाराज” की स्थापना, जिससे ही कष्ट कटेंगे, फिर भी अगर लाभ नहीं मिलता तो पेशी नहीं हटती तो वहां आश्रम जाकर वहां रहकर पूरी प्रक्रिया करें जिससे ही पंचभूत शुद्धि प्रक्रिया कह सकते हैं, पर कार्य अत्यंत कठिन था। क्यों कि इस व्यवस्था को निर्माण करने के लिए पहले श्री बालाजी महाराज के आशीर्वाद से पहले उन पराशक्तियों को जानना था जो समाज कल्याण के लिए अपना योगदान दें – तात्पर्य ऐसे सूक्ष्म ऊर्जा जिन्हें ही हम और आप जान भी नहीं सकते, इन ऊर्जा को एक जगह एकत्र करना बड़ी कठिन प्रक्रिया थी – श्री कुल और काली कुल की ऊजाओं का एक जगह रहकर समाज कल्याण के लिए कार्य करना बड़ा कठिन था पर श्री बालाजी महाराज के आशीर्वाद से यह कार्य हम कर रहे हैं।
कलयुग केिल नाि अधारा ।
सुमिर सुमिर नर उतरहहं पारा ॥
इस विज्ञान से नाम महाराज के स्थान प्रतिष्ठित करने हैं जिससे जनता ही सहयोग करें, जिससे PPT मॉडल कहा जा सकता है – इसी मॉडल को चलाने के लिए निर्माल्य का उद्भव हुआ, जिससे हम सूक्ष्म ऊर्जा को एकत्र कर सकते हैं जो "निर्माल्य" के माध्यम से संभव हो सकता है। पूजन सामग्री में उपलब्ध पुष्प व सामग्री को एक निश्चित विधि से प्रसाद करने से पहले उन ऊजाओं को संरक्षित करने की प्रक्रिया ही “निर्माल्य” है, परंतु यह भौतिक युग में बताने से लोग समझ नहीं पाएंगे, इसलिये इसे एक सही तरीके से लाया गया है। सामग्री उठाना, सीताराम नाम लेखन घर-घर पहुंचाना, जिससे सभी घरों का वास्तु ठीक हो, उन्हें शांति मिले, तात्पर्य समस्याओं का समाधान हो और एक नई संरचना सनातन धर्म की जो विश्वव्यापी बनाई जा सकती है।
जिससे प्रत्येक नगर और ग्राम पंचायतों की ऊर्जा सूक्ष्म ऊर्जा पवित्र होकर सभी में प्रेम सौहार्द का वातावरण निर्माण करने में सहयोग करें। एक ऐसा ऊर्जा स्तंभ जो मानव के शरीर के सूक्ष्म कारण शरीर को रोग मुक्त कर सके। नाम की महिमा तो सभी जानते हैं: इस कमलकाल में नाम से ही हम अपने पाप पुण्य के फल से न्यून हो सकते हैं। नाम के गुण से इस सृष्टि में जीवन के संबंधों को निभाने का आजतिक बल चाहिए – आज के इस युग में प्रेम की मिसाल बनकर रह गया है तो उसका मूल कारण अप्राकृतिक स्त्रॉं जो हमारे मानसिक कोमलताओं को नष्ट कर रहा है, डिप्रेशन, मानसिक असार, काकुता, भोग विलासी होना हम न चाह कर भी इस जाल में फंसते जा रहे हैं। इसका विकल्प ढूंढने के लिए हमें तात्पर्य प्रयास करने पड़ रहे हैं, पर यह साधन ठीक वैसे ही हैं जैसे बीमारी होने पर एंटीबायोटिक रासायनिक दवाइयाँ लेना जो एक सिस्या को तो ठीक करती है पर शरीर में शारीरिक कष्ट बढ़ाती जाती है। जो कुछ भी सही है उसका साइड इफेक्ट काफी समय बाद प्रकट होता है – इसलिये श्री बालाजी पराशक्ती विज्ञान शोध एवं अनुसंधान केंद्र की लगातार खोज से यह सिद्ध हुआ कि हमें ऐसे साइलेंट जोन बनाने पड़ेंगे जो नकारात्मक विचारों, नकारात्मक स्त्रॉं, अप्राकृतिक स्त्रॉं से पीड़ित हमारे मानसिक – आत्मा – इन सबको सकारात्मक अदृश्य तरंगों से पुष्ट करें, जिससे हमें मालूम है कि हमारे शरीर की कोमलताओं को ठीक करने का कार्य केवल और केवल श्री बालाजी नाम जितना अच्छा कर सकता है उतना कोई नहीं। चाहे हम चिकित्सा के किसी स्रोत का प्रयोग करें, अगर हमारी मानसिक स्थिति नष्ट हो गई तो कोई भी विकल्प कार्य नहीं कर सकता। इसलिये हमें ऐसे प्राकृतिक स्त्रॉं (ई-शरीर) को महसूस कर अपने ब्रह्माण्डीय शरीर में पुन: स्थापित करने के लिए ऐसे हर् व्य ऊर्जा स्तंभों की आवश्यकता पड़ेगी जो भविष्य में और समय समय पर हमें अपने आध्यात्मिक बल को जागृत करने की विद्या सरलता से उपलब्ध बनाये रखे। आज इसी आध्यात्मिक बाल शरीरिक मानसिक स्वास्थ्य को पाने के लिए यह एक वास्तविक प्रयास किया जा रहा है, ताकि सही तरीके से उन्हें स्थापित किया जा सके।
उत्तर प्रदेश के प्रत्येक नगर में सीताराम नाम लेखन बैंक एवं श्री बालाजी महाराज का धाम जहां केल “नाम महाराज” की स्थापना, जिससे ही कष्ट कटेंगे, फिर भी अगर लाभ नहीं मिलता तो पेशी नहीं हटती तो वहां आश्रम जाकर वहां रहकर पूरी प्रक्रिया करें जिससे ही पंचभूत शुद्धि प्रक्रिया कह सकते हैं, पर कार्य अत्यंत कठिन था। क्यों कि इस व्यवस्था को निर्माण करने के लिए पहले श्री बालाजी महाराज के आशीर्वाद से पहले उन पराशक्तियों को जानना था जो समाज कल्याण के लिए अपना योगदान दें – तात्पर्य ऐसे सूक्ष्म ऊर्जा जिन्हें ही हम और आप जान भी नहीं सकते, इन ऊर्जा को एक जगह एकत्र करना बड़ी कठिन प्रक्रिया थी – श्री कुल और काली कुल की ऊजाओं का एक जगह रहकर समाज कल्याण के लिए कार्य करना बड़ा कठिन था पर श्री बालाजी महाराज के आशीर्वाद से यह कार्य हम कर रहे हैं।
कलयुग केिल नाि अधारा ।
सुमिर सुमिर नर उतरहहं पारा ॥
इस विज्ञान से नाम महाराज के स्थान प्रतिष्ठित करने हैं जिससे जनता ही सहयोग करें, जिससे PPT मॉडल कहा जा सकता है – इसी मॉडल को चलाने के लिए निर्माल्य का उद्भव हुआ, जिससे हम सूक्ष्म ऊर्जा को एकत्र कर सकते हैं जो "निर्माल्य" के माध्यम से संभव हो सकता है। पूजन सामग्री में उपलब्ध पुष्प व सामग्री को एक निश्चित विधि से प्रसाद करने से पहले उन ऊजाओं को संरक्षित करने की प्रक्रिया ही “निर्माल्य” है, परंतु यह भौतिक युग में बताने से लोग समझ नहीं पाएंगे, इसलिये इसे एक सही तरीके से लाया गया है। सामग्री उठाना, सीताराम नाम लेखन घर-घर पहुंचाना, जिससे सभी घरों का वास्तु ठीक हो, उन्हें शांति मिले, तात्पर्य समस्याओं का समाधान हो और एक नई संरचना सनातन धर्म की जो विश्वव्यापी बनाई जा सकती है।